इंदौर - कवरेज के दौरान जब भीग गई थीं मेरी आँखें: जर्नी ऑफ ए जर्नलिस्ट कार्यक्रम में बोले अनुराग द्वारी

May 18, 2025 - 01:00
May 18, 2025 - 04:26
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इंदौर - कवरेज के दौरान जब भीग गई थीं मेरी आँखें: जर्नी ऑफ ए जर्नलिस्ट कार्यक्रम में बोले अनुराग द्वारी

कवरेज के दौरान जब भीग गई थीं मेरी आँखें: जर्नी ऑफ ए जर्नलिस्ट कार्यक्रम में बोले अनुराग द्वारी

 इंदौर। "मैं भी एक बेटी का पिता हूँ, राजौरी-पुंछ में कवरेज के दौरान मेरी आँखें उस वक्त भीग गई, जब जपनीत कौर नाम की एक बच्ची ने पाकिस्तान के मिसाइल हमले में उसके पिता के मारे जाने की बात कही। उस बच्ची ने बताया कि उसके पिता उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे'। यह बात एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक अनुराग द्वारी ने कही।

 वे स्टेट प्रेस क्लब,मप्र द्वारा आयोजित " जर्नी ऑफ ए जर्नलिस्ट" में अपने पत्रकारीय जीवन के अनुभव साझा कर रहे थे। यह कहते वक्त वे खरगोन में दंगों के दौरान उस बुज़ुर्ग मां को भी याद कर रहे थे जिसका घर ढहा दिया गया था। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शकील अख़्तर ने उनकी पत्रकारिता पर यह उत्प्रेरक बातचीत की। इस दो सत्रों में अनुराग द्वारी से महत्वपूर्ण बातचीत हुई।

पहले सत्र में अनुराग द्वारी से उनकी शिक्षा, खेल और रंगमंच में उनकी दिलचस्पी और पत्रकारिता में इसके सदुपयोग को लेकर बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि रंगमंच ने जहां उन्हें किसी भी चीज को बारीकी से देखना, समझना और अभिव्यक्त करना सिखाया, वहीं जामिया में पढ़ाई के दौरान वहां आने वाले विषय विशेष के जानकारों और तकनीकी प्रशिक्षण ने उन्हें पत्रकारिता में सक्षम बनाने में मदद की।

शकील अख़्तर के पूछे एक सवाल के जवाब में उन्होंने रेडियो और टीवी स्क्रिप्ट का फर्क बताया। उन्होंने कहा, यह दिलचस्पी आज भी बरकरार है, मैने कैनवा टूल पर काम करना सीखने के साथ ही खुद को एडिटिंग में अपग्रेड किया। जब एक डॉक्टर आजीवन पढ़ने और सीखने का काम कर सकता है , तो हम पत्रकार क्यों नहीं ? अपनी पत्रकारीय यात्रा के बारे में बात शुरू करने से पहले अनुराग द्वारी ने शकील अख़्तर के गीत-"चलने का नाम था जिंदगी और हम चलते रहे" का वाचन किया और कहा, यह गीत मेरे चुनौती से भरे पत्रकारिता के सफर भी बयान करता है।

 अनुराग द्वारी ने कहा, कोरोना महामारी के दौरान वे संक्रमित हो गए थे, यह संक्रमण घर तक पहुंचा और मेरे ससुर का देहांत हो गया। उन्होंने कहा, यह समय उनके लिए काफी चुनौती से भरा समय था, तब कोरोना संक्रमण से होने वाली मृत्यु का प्रमाण पत्र पाना किसी जंग लड़ने से कम नहीं था। तब वैक्सीन ट्रायल से जुड़ी मेरी ख़बर भी चैनल पर काफी समय बाद प्रसारित हो सकी थी। वह खबर मेडिकल इमरजेंसी से जुड़ी थी। उन्होंने कहा, बुरे हालात में एक पत्रकार को कई तरह के संघर्ष गुजरना पड़ता है। ज़रूरी नहीं कि आपको मदद मिल ही जाए।

अनुराग द्वारी से शकील अख़्तर ने उनकी मानसून एक्सप्रैस, वन्देमातरम, सचिन तेंदुलकर जैसी अलग तरह की स्टोरीज पर भी चर्चा की। इन स्टोरीज पर पत्रकारिता की समझ बढ़ाने के हिसाब से बातचीत को विस्तार दिया। श्री द्वारी ने कहा, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा मुझे मराठी, मैथिली और बांग्ला भाषा का ज्ञान मेरे काम और मेरी समझ में काफी मदद करता है। उन्होंने अपनी साहित्यिक रुचि के बारे में बताया। कहा- प्रेमचंद, धर्मवीर भारती और रसकिन बॉन्ड जैसे साहित्यकारों ने मुझे सही बात कहने और अभिव्यक्त करने की समझ दी। उन्होंने कहा कि मैं 20 सालों से एनडीटीवी में अपनी सेवाएं दे रहा हूं, इस एक संस्थान में रहते हुए मैंने अपनी जनहित में बेहतर काम किया है, इसकी मुझे आज़ादी मिली है, इसकी प्रशंसा की जाना चाहिए '।

लोकप्रिय टीवी पत्रकार के साथ बीते करीब डेढ़ दशक से काम कर रहे कैमरामैन रिजवान खान भी कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने मोबाइल जर्नलिज़्म पर अपने विचार रखे। श्री खान ने मोबाइल से विजुअल शूट करने को लेकर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, बेहतर मोबाइल से फिल्माए गए दृश्य किसी बड़े कैमरे की तुलना में कम नहीं होते। कार्यक्रम में आरंभ में स्वागत अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल, मनोहर लिंबोदिया, पुष्कर सोनी, दीपक माहेश्वरी, समीर खान, रचना जौहरी और अभिषेक सिंह सिसोदिया ने किया। इस अवसर पर अनुराग द्वारी और रिजवान खान को स्मृति चिन्ह सोनाली यादव और शीतल राय ने प्रदान किया। संचालन यशवर्धन सिंह ने किया।

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